Friday 24 September 2021

स्टूडियो प्रोडक्शन (Studio Production)

स्टूडियो प्रोडक्शन - एक स्टूडियो में शूट और निर्मित एक फिल्म, ऑडियो या वीडियो.

 'स्टूडियो प्रोडक्शन' शब्द को 'फील्ड प्रोडक्शन' के विपरीत, एक निश्चित स्टूडियो वातावरण में ऑडियो/वीडियो रिकॉर्ड करने और बनाने की प्रक्रिया को कहा जाता है



इसमें स्टूडियो शब्द अपने आप में एक भौतिक भवन (Physical Building) को संदर्भित करता है जो अभिनय, वास्तुकला, वुडवर्किंग, स्क्रैपबुकिंग, फोटोग्राफी, ग्राफिक डिजाइन, फिल्म निर्माण, एनीमेशन, औद्योगिक डिजाइन, रेडियो या टेलीविजन उत्पादन प्रसारण या संगीत बनाने के उद्देश्य से हो सकता है। प्रोडक्शन स्टूडियो की बात की जाये तो यह मूल रूप से साउंड प्रूफ (Acoustic) होता है और उसमे आवश्यकता अनुसार उपकरण उपलब्ध होते हैं जैसे कैमरा, माइक्रोफोन, लाइट्स, साउंड, स्टेज इत्यादि

वहीँ ऑडियो/वीडियो कंटेंट तैयार करने की प्रक्रिया को प्रोडक्शन कहते हैं चाहे वो कोई शार्ट फिल्म हो, म्यूजिक एल्बम हो, रेडियो प्रोडक्शन हो या फिर कोई हॉलीवुड मूवी. आवश्यकतानुसार प्रक्रिया थोड़ी भिन्न हो सकती है, लेकिन व्यापक प्रक्रिया मूल रूप से समान है। मूल प्रक्रिया को तीन उपश्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है प्री-प्रोडक्शन, प्रोडक्शन, पोस्ट-प्रोडक्शन

फील्ड प्रोडक्शन (Field Production) की तुलना में स्टूडियो प्रोडक्शन में तत्वों (Elements) को नियंत्रित करना कण्ट्रोल रूम की साहयता से बहुत आसान होता है, जिसमे फिक्स्ड लाइटिंग, साउंड कण्ट्रोल, विज़न मिक्सर, टैलिप्राम्प्टर जैसी सुविधा उपलब्ध रहती हैं साथ ही विशिष्ट सुविधाएं जैसे मेकअप रूम, लाउन्ज व्यक्तिगत स्टूडियो पर निर्भर करती हैं

फील्ड प्रोडक्शन में उपकरणों का अधिक सेट-अप शामिल होता है, जिसको लोकेशन पर सेट करने में अधिक समय लगता है वहीँ स्टूडियो प्रोडक्शन में सभी उपकरण पहले से फिक्स्ड रहते हैं । फील्ड प्रोडक्शन में मौसम और प्रकाश व्यवस्था भी एक बड़ी भूमिका निभाते हैं, और साउंड रिकॉर्डिंग में भी नॉइज़ आने की संभावना बनी रहती है, जो स्थान पर निर्भर करती है। साथ ही, फील्ड प्रोडक्शन में समय का भी महत्व होता है, क्योंकि प्रोडक्शन को पूरा करने के बाद उपकरण को पैक करके साइट से हटाने का भी समय चाहिए होता है ।

स्टूडियो प्रोडक्शन, जब अच्छी तरह से प्लांड होता है, तो रिकॉर्डिंग अधिक तेज़ी से हो सकती है, और वीडियो वाल और उच्च तकनीक नियंत्रण कक्षों के आने बाद से, इसकी रिकॉर्डिंग अक्सर उच्च गुणवत्ता में होने लगी है । फ़ील्ड प्रोडक्शन में संपादन अक्सर कंप्यूटर और सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके शूट के बाद किया जाता है। वहीँ स्टूडियो प्रोडक्शन में वीडियो स्विचर के उपयोग के माध्यम से स्टूडियो प्रोडक्शन के साथ संपादन (Editing) को भी आसान बना दिया है, जिससे परिणामस्वरूप समय और लागत दोनों की बचत होती है

शौकिया या कम बजट के प्रोडक्शन के लिए, एक स्टूडियो कहीं भी स्थापित किया जा सकता है, जिसमें कम से कम उपकरण के साथ भी इसे संचालित किया जा सकता है। कंप्यूटर टेक्नोलॉजी और वायरलेस एप्लीकेशन ने स्टूडियो वातावरण के निर्माण को शौकिया स्टूडियो प्रोडक्शन टीम के लिए अधिक सुलभ बना दिया है।



Friday 3 April 2020

वीडियो एडिटिंग : इंटरफ़ेस (Interface)

वीडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयर इंटरफ़ेस (Interface)

इंटरफ़ेस – किसी भी एडिटिंग सॉफ्टवेयर का इंटरफ़ेस उसके ले-आउट या वर्क-स्पेस को दर्शाता है जिस पर एक यूजर अलग-अलग विंडो पर अपना एडिटिंग का कार्य करता है. वैसे तो सॉफ्टवेयर इंटरफ़ेस उस लैंग्वेज और कोड्स को कहा जाता है जो एप्लीकेशन्स को एक दुसरे से जोड़ते हैं, पर यहाँ हम बात कर रहे हैं वीडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयर के इंटरफ़ेस की जो पैनल (विंडो) बेस इंटरफ़ेस का उपयोग करता है. लगभग सभी वीडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयर (Adobe premiere, FCP आदि) इसी तरह के इंटरफ़ेस का उपयोग करते हैं बस अंतर होता है तो उसकी टर्मिनोलॉजी (Terminology) में. यहाँ हम दो सॉफ्टवेयर एडोब प्रीमियर प्रो (Adobe Premiere Pro) और फाइनल कट प्रो (Final Cut Pro-10) के इंटरफ़ेस के बारे में बात करेंगे.

एडोब प्रीमियर सॉफ्टवेयर इंटरफ़ेस – 
इस सॉफ्टवेयर में पुरे इंटरफ़ेस कॉन्फ़िगरेशन को वर्क स्पेस (Work Space) कहा जाता है. इस एप्लीकेशन में अलग-अलग कार्य हेतु प्री-बिल्ट वर्क-स्पेस या पैनल उपलब्ध हैं जिसमे आप अपना पूरा एडिटिंग कार्य कर सकते हैं. ये पैनल आपको आपके वीडियो को इम्पोर्ट करने, एडिट करने, ऑडियो वीडियो को प्रीव्यू करने के साथ ही विभिन्न ट्रांजीशन और इफेक्ट्स का उपयोग करते हुए अलग-अलग वीडियो फॉर्मेट में एक्सपोर्ट करने के आप्शन देता है. जो इस प्रकार हैं (चित्र क्रमांक 24 (a))– 

चित्र क्रमांक 24 (a)
1. प्रोजेक्ट पैनल (Project Panel) – आप कभी भी अपने ओरिजिनल फुटेज को डिलीट नहीं करना चाहोगे इसीलिए एडिटिंग सॉफ्टवेयर आपके ऑडियो वीडियो फाइल कि रेफरेंस फाइल (Reference File) को ही इम्पोर्ट करता है जिससे आपका ओरिजिनल फुटेज सुरक्षित रहता है. वो वीडियो फाइल, ऑडियो फाइल, फोटो फाइल आप इस पैनल में इम्पोर्ट कर सकते हैं और साथ ही उसे ओर्गनाइज़ (Organize) कर सकते हैं. 
2. सोर्स मॉनिटर (Source Monitor) – सोर्स मॉनिटर का उपयोग, प्रोजेक्ट पैनल में इम्पोर्ट की गयी ऑडियो/वीडियो/पिक्चर फाइल को ड्रैग और ड्रॉप करके या उन्हें डबल-क्लिक करके प्लेबैक और प्रीव्यू करने के लिए किया जाता है. सोर्स मॉनिटर में, आप इन और आउट पॉइंट सेट कर सकते हैं और उसे टाइम लाइन सीक्वेंस में जोड़ सकते हैं । 
3. टाइमलाइन पैनल (Timeline Panel) - आप अपने एडिटिंग कार्य का अधिकांश हिस्सा टाइमलाइन पैनल पर करते हैं, जिसमें क्लिप जोड़ना, उनकी पोजीशन बदलना और उनकी प्रॉपर्टीज को बदलना शामिल है। टाइम लाइन में सेपरेट वीडियो ट्रैक और ऑडियो ट्रैक होते हैं जिसमे आप ऑडियो वीडियो फाइल को जोड़ते हैं. आप अपने प्रोजेक्ट में वीडियो और ऑडियो क्लिप में ट्रांजीशन और इफ़ेक्ट जोड़ने के लिए भी टाइमलाइन का ही उपयोग करते हैं। प्रोजेक्ट में प्रत्येक सीक्वेंस (Sequence) की एक अलग और स्वतंत्र टाइमलाइन होती है. जब कई टाइमलाइन दिखाई देती हैं, तो पैनल प्रत्येक को अलग करने के लिए टैब डिस्प्ले (Tab Display) का उपयोग करता है जैसा हम वेब ब्राउजर (Web Browser) में देखते हैं।
4. प्रोग्राम मॉनिटर (Programme Monitor) – प्रोग्राम मॉनिटर एक लाइव मॉनिटर की तरह काम करता है. इसका उपयोग टाइमलाइन पर होने वाली पिक्चर/ऑडियो/वीडियो क्लिप की एडिटिंग के प्लेबैक और प्रीव्यू करने के लिए किया जाता है।
5. ऑडियो मीटर पैनल (Audio Meter Panel) - यह पैनल VU (वॉल्यूम यूनिट) मीटर है। यह क्लिप के वॉल्यूम लेवल (जो ऑडियो की यूनिट decibel यानी DB में होता है) को दिखाता है. ऑडियो लेवल इंडियन स्टैण्डर्ड के हिसाब से लगभग -12db से -6db के बीच होना चाहिए. इस पैनल में ऑडियो डिस्प्ले तभी दिखता है जब आप वीडियो और ऑडियो क्लिप को सोर्स मॉनिटर या टाइमलाइन पर प्लेबैक या प्रीव्यू करते हैं।
6. टूल पैनल और पैलेट (Tool Panel or Palette) – इस पैनल में विभिन्न एडिटिंग टूल्स उपलब्ध हैं जिसे आप एडिटिंग के दौरान उपयोग कर सकते हैं। जिस भी टूल को आप एक्टिव या उपयोग करेंगे कर्सर (Cursor) उस टूल के साइन में बदल जाएगा। जैसे पेन टूल (PEN Tool) का उपयोग करने पर कर्सर पेन के शेप में आ जाएगा.
7. इफ़ेक्ट कण्ट्रोल पैनल (Effect Control Panel) – यह पैनल आपको उन इफेक्ट्स को एडिट करने की अनुमति देता है जो आपकी क्लिप पर लागू किए गए हैं। इन्हें एक्सेस करने के लिए, आपको टाइमलाइन में उस क्लिप को डबल क्लिक करके चुनना होगा। यदि आपके पास कोई क्लिप चयनित नहीं है, तो पैनल रिक्त रहता है। कुछ ऑडियो वीडियो इफ़ेक्ट इसमें बाय डिफ़ॉल्ट हर क्लिप के साथ उपलब्ध होते हैं जैसे मोशन (Motion), ओपेसिटी (Opacity), टाइम रीमेपिंग (Time Remapping) और ऑडियो प्रॉपर्टीज (Audio Properties) आदि के लिए भी पैनल का उपयोग किया जा सकता है.
8. इफ़ेक्ट पैनल (Effect Panel) – इफ़ेक्ट पैनल में सभी वीडियो और ऑडियो इफ़ेक्ट और ट्रांजीशन उपलब्ध होते हैं. आप एक क्लिप से दूसरे में ट्रांजीशन करने के लिए क्लिप के बीच डीसोल्व, डिप टू ब्लैक, पेज पील्स जैसे ट्रांजीशन जोड़ सकते हैं। तो वहीँ आप क्लिप कि अपीयरेंस या ऑडियो प्रॉपर्टीज को बदलने के लिए, व्यक्तिगत क्लिप में ब्राइटनेस, कलर बैलेंस, क्रोमा जैसे इफेक्ट्स को जोड़ सकते हैं।

इसके अलावा मीडिया ब्राउज़र पैनल (Media Browser Panel), हिस्ट्री पैनल (History Panel), मेटाडाटा पैनल (Metadata Panel), इन्फो पैनल (Info Panel), मार्कर पैनल (Marker Panel) जैसे पेनल्स भी इसमें उपलब्ध होते हैं जिसका उपयोग किया जा सकता है. 

फाइनल कट प्रो (FCP) X– 

फाइनल कट प्रो 7 (FCP7) तक के सभी वर्सन (Version) का एडोबी प्रीमियर के जैसा ही इंटरफ़ेस है. पर FCP 10 से इसके इंटरफ़ेस में काफी बदलाव है जैसे मैग्नेटिक टाइमलाइन (Magnetic Timeline), स्किमर (Skimmer) आदि जिसके बारे में हम नीचे चर्चा करेंगे. (चित्र क्रमांक 24 (b))

चित्र क्रमांक 24 (b)
1. साइडबार और ब्राउज़र (Side Bar and Browser)- ब्राउज़र विंडो वह जगह है जहां आप अपना इम्पोर्टे (Import) किया हुआ मीडिया देख सकते हैं । साइडबार विंडो ब्राउज़र विंडो के बाईं ओर होती है। साइडबार आपके सभी प्रोजेक्ट के फ़ोल्डरों, इवेंट्स और लाइब्रेरी को दर्शाता है जिसे आप यहाँ क्रिएट और ओर्गनाइज़ भी कर सकते (इवेंट एक फोल्डर कि तरह होता है जिसके अन्दर क्लिप और प्रोजेक्ट होते हैं)। आप जो भी फोल्डर और इवेंट को साइडबार में सेलेक्ट करेंगे उसका मीडिया या फाइल्स ब्राउज़र विंडो में दिखने लगेगा. अब आप इस सिलेक्टेड फाइल को या इसमें से कुछ हिस्सा स्कीम करके देख सकते हैं और उसे सेलेक्ट कर टाइम लाइन पर ड्रैग और ड्राप कर सकते हैं. 
(स्किमिंग, जिसे आप एस S बटन से चालू या बंद कर सकते हैं, यह ब्राउज़र में या आपके प्रोजेक्ट टाइमलाइन में किसी भी क्लिप को क्लिक किए बिना पॉइंटर को एक तरफ से दूसरी तरफ ले जाकर उसके कंटेंट को देखने की अनुमति देता है। इसके द्वारा आप बहुत तेज़ी से अपने सोर्स फुटेज की सामग्री की समझ प्राप्त कर सकते हैं।)
2. व्यूअर (Viewer) – व्यूअर विंडो ब्राउज़र विंडो के बगल में होती है जहाँ हम ब्राउज़र विंडो और टाइमलाइन विंडो दोनों के मीडिया को प्लेबैक करके देख सकते हैं. इस मीडिया को आप फुल विंडो व्यू में या ड्यूल विंडो (Dual Window) व्यू (जिसमे आप दो वीडियो एक साथ देख सकते हैं: एक टाइमलाइन से और एक ब्राउज़र से) में भी देख सकते हैं. 
3. मैग्नेटिक टाइमलाइन (Magnetic Timeline) – टाइमलाइन वो जगह है जहाँ आप अपने प्रोजेक्ट में क्लिप को जोड़कर, अरेंज करके और उसे एडिट करके क्रिएट करते हैं. FCP10 में मैग्नेटिक टाइमलाइन का उपयोग किया जाता है जिसमे टाइमलाइन मैगनेट कि तरह अपनी ऑडियो वीडियो क्लिप को एडजस्ट करती है जिसे आप ब्राउज़र विंडो से ड्रैग करके टाइमलाइन पर ड्राप करते हैं. अगर आप किसी क्लिप को खाली जगह पर ड्राप करते हैं तो वह क्लिप अपने आप आस पास कि क्लिप से आकर जुड़ जाती है इसीलिए इसे मैग्नेटिक टाइमलाइन कहा जाता है. 
चित्र क्रमांक 24(c)
आप इसमें ऑडियो लेन को उनके रोल के हिसाब से अरेंज कर सकते हैं. जैसे एक ऑडियो लेन सिर्फ म्यूजिक के लिए हो, दूसरी ऑडियो लेन सिर्फ वोइस ओवर के लिए हो और तीसरी साउंड इफ़ेक्ट के लिए. 

चित्र क्रमांक 24 (d)


Saturday 28 March 2020

वीडियो एडिटिंग : ट्रांजीशन (Transition)

वीडियो ट्रांजीशन (Video transition)

जिस तरीके से किसी भी दो वीडियो शॉट्स को एक साथ जोड़ा जाता है उसे वीडियो ट्रांजीशन कहते हैं (The way in which any two video shots are joined together is called the Video transition).

यह एक पोस्ट-प्रोडक्शन तकनीक है जिसका उपयोग फिल्म या वीडियो संपादन में एक शॉट को दूसरे से जोड़ने के लिए किया जाता है। अक्सर जब एक फिल्म निर्माता दो शॉट एक साथ जोड़ना चाहता है, तो वे एक मूल ट्रांजीशन “कट” का उपयोग करते हैं जहां एक शॉट को तुरंत अगले शॉट द्वारा बदल दिया जाता है। लेकिन जब फिल्म निर्माता एक विशेष मनोदशा को व्यक्त करना चाहता है, कहानी के बीच बड़ा अंतर दिखाना चाहता हो, किसी अन्य दृष्टिकोण पर स्विच करना चाहता हो, स्टोरी में समय के साथ पीछे या आगे बढ़ना चाहता हो? तब उसे अधिक कलात्मक ट्रांजीशन का उपयोग करना होता है जो इस प्रकार हैं-

ट्रांजीशन के प्रकार (Types of Transition) – 

1. कट (Cut) -
सबसे आम ट्रांजीशन - एक कट के लिए किसी भी तरह की प्रोसेसिंग की जरूरत नहीं है - एक शॉट समाप्त होता है और दूसरा शुरू होता है। आपके कैमरे के रॉ फुटेज में शॉट्स के बीच कट होते हैं, जहाँ आप रुकते हैं और जहाँ से आप रिकॉर्डिंग शुरू करते हैं. अधिकतर न्यूज़ स्टोरीज या पैकेज में कट ट्रांजीशन का ही उपयोग किया जाता है. चित्र क्रमांक 23 (a).

2. मिक्स/डीसोल्व/क्रॉसफेड (Mix/Dissolve/Cross fade) – 
यह सभी एक ही तरह के ट्रांजीशन को परिभाषित करते हैं जिसमे एक शॉट धीरे-धीरे ओवरलैप करते हुए दुसरे शॉट को रिप्लेस करता है जिसे हम ओवरलैपिंग (Overlapping) भी कहते हैं. इस ट्रांजीशन का उपयोग अधिकार डाक्यूमेंट्री में किया जाता है जहाँ स्टोरी का पेस (Pace) काफी स्लो होता है और जहाँ हमें लम्बे शॉट्स को मंद गति और चिंतनशील मनोदशा के साथ दिखाना होता है. क्रॉसफेड ​​ट्रांजीशन लम्बा समय गुजारने या स्थान बदलने की भावना को भी व्यक्त कर सकता है। चित्र क्रमांक 23 (b).

3. फेड इन एवं फेड आउट (Fade-In and Fade-out)
यह दूसरा सबसे जायदा उपयोग होने वाला ट्रांजीशन है. यह ट्रांजीशन अधिकतर फिल्म के शुरुवात में (फेड-इन) या समाप्ति (फेड-आउट) में उपयोग होता है जिसमे हम स्क्रीन को धीरे-धीरे एक सिंगल कलर में बदल देते हैं या सिंगल कलर से धीरे-धीरे स्क्रीन में आ जाते हैं. जैसे सूर्योदय और सूर्यास्त के समय होता है. “फेड टू ब्लैक” सबसे जायदा उपयोग होने वाला फेड-आउट ट्रांजीशन है.

4. वाइप (Wipe) – 
इस तरह के ट्रांजीशन में एक शॉट दुसरे शॉट को जियोमेट्रिक पैटर्न में प्रोग्रेस्सिवेली रिप्लेस करता है. सीधी रेखाओं से लेकर जटिल आकृतियों तक, हर तरह के वाइप ट्रांजीशन एडिटिंग सॉफ्टवेर में उपलब्ध होते हैं जैसे बेंड वाइप, क्लॉक वाइप, इनसेट आदि. एक वाइप तब होता है जब एक शॉट फ्रेम के एक तरफ से (पहले शॉट को हटाते हुए) दूसरे तरफ तक जाता है. चित्र क्रमांक 23 (c).

Simple Transitions (Shot A to Shot B)
  
  CUT – A Changes instantly to B - चित्र क्रमांक 23 (a)
   
   Dissolve – A merge or Fade into B - चित्र क्रमांक 23 (b)

 
 
    
  Wipe – A is progressively replaced by B - चित्र क्रमांक 23 (c)
 

 
ट्रांजीशन बहुत महत्वपूर्ण हैं - कैमरा ऑपरेटर से संपादक तक सभी को इस बात की अच्छी समझ होनी चाहिए कि प्रभावी ट्रांजीशन कैसे करें, तभी एक अच्छे प्रोडक्शन का निर्माण हो पता है.

ट्रांजीशन बहुत असरदार हो सकते हैं, लेकिन ट्रांजीशन का जरुरत से अधिक उपयोग करना एक आम गलती है। इसीलिए प्रोडक्शन में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कहाँ कौन सा ट्रांजीशन लगाना है और कहाँ नहीं और इसको समझना ही एडिटिंग अस्थेटिक (Editing Aesthetic) कहलाता है. अधिकांश प्रोफेशनल एडिटर भी अपने प्रोडक्शन में सिर्फ, कट या क्रॉसफ़ेड ट्रांजीशन का ही उपयोग करते हैं क्योंकि एनिमेटेड ट्रांजीशन या तो डिस्टरेक्ट कर सकते हैं या वीडियो के फ्लो पर प्रभाव डाल सकते हैं।

एक उपयुक्त प्रकार के ट्रांजीशन का चयन करना काफी महत्वपूर्ण है, इसलिए इसका चयन करने के लिए हमें कुछ सवाल अपने आप से पूछने होते हैं जैसे –
· आप ट्रांजीशन लगाकर क्या दर्शाना चाहते हैं और क्या उससे आपका उद्देश्य पूरा हो रहा है?
· क्या ट्रांजीशन लगाने के बाद शॉट समझ में आ रहा है, या भ्रामक है?
· क्या यह कहानी को आगे बढ़ाता है?

ट्रांजीशन प्रोडक्शन के तीनो स्टेज में उपयोग किया जा सकता है –
इन-कैमरा: कुछ कैमरे बिल्ट-इन ट्रांज़िशन और फ़ेड के साथ आते हैं।
जनरेटिंग डिवाइस: लाइव प्रोडक्शंस में, स्पेशल इफ़ेक्ट जनरेटर या विज़न मिक्सर का उपयोग करके वास्तविक समय में ट्रांजीशन को जोड़ा जा सकता है। 
पोस्ट-प्रोडक्शन: उपयुक्त सॉफ्टवेयर का उपयोग करके, संपादन के दौरान ट्रांजीशन को जोड़ा जा सकता है।

वीडियो ट्रांजीशन को एडिटिंग सॉफ्टवेयर में कैसे उपयोग करना है इसके लिए निचे दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक कर सकते हैं -
https://www.youtube.com/watch?v=sMyYGU1_0Io

Monday 20 May 2019

वीडियो एडिटिंग : प्रकार (Offline and Online Editing)

ऑफलाइन और ऑनलाइन एडिटिंग

ऑफलाइन एडिटिंग मतलब होता है “रफ़ कट” - यह वीडियो संपादन का पहला चरण है। ऑफ़लाइन संपादन का उद्देशय वास्तव में किसी भी वीडियो फुटेज को कम-गुणवत्ता (लो रिज़ॉल्यूशन) में संपादित करके प्रोजेक्ट का एक रफ़ कट या ड्राफ्ट कट तैयार करना है, जो मुख्य संपादक और संभवतः निर्देशक के लिए फाइनल कट में मार्गदर्शक का काम करता है । ऑफ़लाइन संपादक की एक और भूमिका है "एडिट डिसीजन लिस्ट (EDL)" बनाना, जो लॉग शीट (शॉट्स की एक सूची) के समान है। एक बार अंतिम रूप देने के बाद, अनुक्रम को EDL में अनुवाद किया जाता है, जिसमें सभी कट के लिए टाइमकोड शामिल हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जब ऑफ़लाइन संपादक दृश्यों की एक सूची बना लेता है, बाद में वही सूचि ऑनलाइन संपादक अनुसरण करता है और अंतिम कट को संपादित करने के लिए बदलाव करता है । ऑफ़लाइन संपादक भी रचनात्मक कट का उपयोग करके रफ़ कट को रोचक बना सकते हैं; जैसे डिसॉल्व, फेड इत्यादि।

चित्र क्रमांक 22(a)
Hand made EDL

चित्र क्रमांक 22(b)
Computer generated EDL
ऑनलाइन एडिटिंग मतलब होता है “फाइनल कट” - एक बार ऑफ़लाइन संपादन पूरा हो गया है और शॉट्स का क्रम निर्धारित हो गया है, उसके बाद ऑनलाइन संपादन शुरू होता है। वीडियो संपादन के इस चरण में, रफ़ कट को पॉलिश और ठीक किया जाता है । EDL ऑनलाइन संपादक के लिए एक ब्लू प्रिंट के रूप में कार्य करता है, जिससे वह समझ पाते हैं कि तैयार प्रोजेक्ट को कैसा दिखना है। ऑनलाइन संपादन में लो रेसोल्यूशन प्रोजेक्ट को उच्च गुणवत्ता (हाई रेसोल्यूशन) फुटेज में कन्वर्ट करके उसे संपादित करना होता है जिसे हम "फाइनल कट" कहते हैं । ऑनलाइन संपादक, EDL के आधार पर फाइनल कट का पुनर्निर्माण करता है, जो ऑफ़लाइन संपादकों द्वारा ही बनाया गया होता है । संपादक इसमें कुछ इफेक्ट्स, टाइटलिंग (titling) और रंग सुधार (color correction) इफ़ेक्ट उपयोग करके उसे पब्लिश करता है जो प्रसारण या वितरण की आवश्यकताओं को पूरा करता हो । चित्र क्रमांक 22(c) 

कुछ संदर्भों में, ऑफ़लाइन संपादन चरण आवश्यक या संभव नहीं होता है। उदाहरण के लिए, समाचार या राजनीतिक बहस जैसे लाइव प्रसारण, ऑफ़लाइन संपादन के लिए समय नहीं रखते हैं और न ही इन फॉर्मेट में फिल्म, टेलीविज़न या विज्ञापनों जैसे स्टोरीटेलिंग या पेसिंग की आवश्यकता होती है। लेकिन एक गुणवत्ता वाले प्रोडक्शन के लिए, इन वीडियो संपादन चरणों का अधिकतम लाभ उठाना सबसे अच्छा है।

चित्र क्रमांक 22(c)

प्रक्रिया-
नॉन लीनियर एडिटिंग में ऑफ लाइन संपादन का मतलब है कि आप कम रिज़ॉल्यूशन वीडियो में चयनित शॉट्स को कैप्चर करते हैं और उन्हें अपने रफ कट के लिए उपयोग करते हैं। कम रिज़ॉल्यूशन में वीडियो इम्पोर्ट करने का कारण स्टोरेज स्पेस और प्रोसेसिंग टाइम को बचाना है। भले ही आप संपादित कम रिज़ॉल्यूशन संस्करण को शुरू से लेकर अंत तक चलाते हैं, आपका अंतिम उद्देश्य वास्तव में एक सटीक ईडीएल तैयार करना है। अब ऑनलाइन संस्करण का संपादन करते समय, आप उसी चयनित फुटेज को हाई रिज़ॉल्यूशन में फिर से डिजिटाइज़ करते हैं और EDL के अनुसार उन्हें जोड़ते हैं।

Monday 7 January 2019

वीडियो एडिटिंग : प्रकार (Linear and Non Linear Editing))

लीनियर एडिटिंग और नॉन लीनियर एडिटिंग 

वीडियो संपादित करने के कई अलग-अलग तरीके हैं और प्रत्येक विधि के अपने फायदे और नुक्सान हैं। हालांकि अधिकांश संपादक अधिकतर प्रोडक्शन के लिए नॉन-लीनियर एडिटिंग का विकल्प चुनते हैं, लेकिन यह समझना भी जरुरी है कि प्रत्येक विधि कैसे काम करती है।

इस ब्लॉग में प्रत्येक संपादन विधि का एक संक्षिप्त विवरण बताया गया है - हम उन्हें अन्य ट्यूटोरियल ब्लॉग में अधिक विस्तार से कवर करेंगे।

टेप टू टेप संपादन (लीनियर एडिटिंग) – 
1990 के दशक में कंप्यूटर संपादित करने से पहले, लीनियर संपादन (एक क्रम में) इलेक्ट्रॉनिक वीडियो टेप को संपादित करने की मूल विधि थी। हालांकि यह अब पसंदीदा विकल्प नहीं है, फिर भी यह कुछ स्थितियों में उपयोग किया जाता है। 

लीनियर संपादन में, वीडियो को एक टेप से दूसरे टेप में चुनिंदा रूप से कॉपी किया जाता है। इसके लिए कम से कम दो वीडियो मशीनों को एक साथ कनेक्ट करने की आवश्यकता होती है - एक स्रोत के रूप में कार्य करता है और दूसरा रिकॉर्डर होता है। मूल प्रक्रिया काफी सरल है (चित्र क्रमांक - 21 (b) देखें)


इसके लिये आपको निम्न उपकरण की आवशयकता होगी : 
  • दो वीटीआर (वीडियो टेप मशीन), A/V (ऑडियो और वीडियो) आउटपुट के साथ। यदि आपके पास A/V आउटपुट नहीं है, तो आप इसके बजाय आरएफ (एरियल) आउटपुट का उपयोग कर सकते हैं। नोट:यदि आपके पास केवल एक वीटीआर है, तो आप दूसरे वीटीआर के रूप में एक कैमकॉर्डर का उपयोग कर सकते हैं। 
  • कम से कम एक वीडियो मॉनिटर, लेकिन अधिमानतः दो। पेशेवर मॉनिटर सर्वोत्तम हैं लेकिन यदि आवश्यक हो तो आप टेलीविज़न का उपयोग कर सकते हैं। 
  • कनेक्टिंग केबल। 
  • आप जिन टेपों को संपादित करना चाहते हैं और एक खाली टेप जिसको संपादित करना चाहते हैं (यह मास्टर टेप बन जाएगा)।
सेटअप प्रक्रिया - 
  • दो वीटीआर को एक साथ जोड़ने के लिए, स्रोत मशीन के वीडियो और ऑडियो आउटपुट को रिकॉर्ड मशीन के वीडियो और ऑडियो इनपुट में प्लग करें।
  • कई सामान्य एनालॉग कनेक्शन प्रकार हैं, जिनमें सबसे आम आरसीए, आरएफ (एकेए एरियल या बेलिंग-ली), एस-वीडियो और एससीएआरटी हैं। एस-वीडियो शायद वीडियो के लिए सबसे अच्छा विकल्प है और ऑडियो के लिए आरसीए। आरएफ सबसे कम गुणवत्ता वाला है और इसमें अन्य जटिलताएं हैं.
  • डिजिटल वीडियो मशीनों में फायरवायर (चित्र क्रमांक - 21 (a)) या यूएसबी जैसे कनेक्टर भी हो सकते हैं, जो सभी की सबसे अच्छी गुणवत्ता हैं।
  • एक बार टेप मशीन कनेक्ट हो जाने के बाद, प्रत्येक मशीन को अपने स्वयं के मॉनिटर से कनेक्ट करें।
  • एक बार सब कुछ जुड़ जाने के बाद, सिस्टम का परीक्षण करें (रिकॉर्ड मशीन में एक टेप चलाएं और सुनिश्चित करें कि यह रिकॉर्ड मॉनिटर पर दिखाई देता है। ऑडियो की भी जांच करें।
  • यदि आपका परीक्षण सफल है, तो आप संपादन शुरू करने के लिए तैयार हैं। 
इसके एडिटिंग में सोर्स टेप के उन हिस्सों को रिकॉर्ड करना है जिन्हें आप रखना चाहते हैं। इस तरह से वांछित फुटेज (Desired footage) को मूल टेप से एक नए टेप में सही क्रम में कॉपी किया जाता है। वही नया रिकार्डेड टेप संपादित संस्करण (Edited version) बन जाता है।

चित्र क्रमांक - 21 (a)


चित्र क्रमांक - 21 (b)
संपादन की इस पद्धति को "लीनियर" कहा जाता है क्योंकि इसमें लीनियर यानि एक क्रम शॉट्स लगाकर संपादन किया जाता है; यानी, पहले शॉट से शुरू होकर आखिरी शॉट तक एक के बाद एक शॉट को जोड़ना । यदि संपादक ने अपना मन बदल लिया या कोई गलती नोटिस कर ली, तो वीडियो के पिछले हिस्से में वापस जाना और संपादित करना लगभग असंभव है। हालांकि, थोड़े अभ्यास के बाद, लीनियर संपादन अपेक्षाकृत सरल और आसान हो जाता है।

डिजिटल/कंप्यूटर संपादन (नॉन-लीनियर एडिटिंग) – 

इस विधि में, वीडियो फुटेज को कंप्यूटर हार्ड ड्राइव पर रिकॉर्ड/सेव किया जाता है (कैप्चर किया जाता है) और फिर विशेष एडिटिंग सॉफ्टवेयर का उपयोग करके संपादित किया जाता है (चित्र क्रमांक - 21 (c) देखें)। एक बार संपादन पूरा हो जाने के बाद, तैयार वीडियो को वापस टेप या ऑप्टिकल डिस्क में रिकॉर्ड किया जाता है।

नॉन-लीनियर संपादन में लीनियर संपादन के मुकाबले कई महत्वपूर्ण फायदे हैं। सबसे विशेष रूप से, यह एक बहुत ही लचीला तरीका है जो आपको किसी भी समय वीडियो के किसी भी हिस्से में बदलाव करने की अनुमति देता है। यही कारण है कि इसे "नॉन-लीनियर" कहा जाता है - क्योंकि इसमें आपको लीनियर फैशन में संपादित करने की आवश्यकता नहीं है।

चित्र क्रमांक - 21 (c)
नॉन-लीनियर संपादन पर वीडियो को संपादित करने के लिए आपको निम्न उपकरणआवश्यकता होगी:
  • मूल टेप, डिस्क या एस. डी. कार्ड को चलाने के लिए एक स्रोत उपकरण। आमतौर पर एक वीसीआर, कैमरा या  कार्ड रीडर ।
  • एक कंप्यूटर सिस्टम अधिक से अधिक कॉन्फिग्रेशन वाला - i-7, 08 GB RAM, SSD etc.
  • एक वीडियो कैप्चर डिवाइस - एनालॉग (जैसे वीएचएस या वीडियो 8) को डिजिटल में कोवर्ट करने के लिए. यदि आप डिजिटल डिवाइस का उपयोग करते हैं (जैसे कि फायरवायर, यूएसबी या SD Card) तो आपको कैप्चर डिवाइस की आवश्यकता नहीं है, लेकिन आपको यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है.
  • केबल एवं कनेक्टर्स।
  • कैप्चरिंग, संपादन और आउटपुट को नियंत्रित करने के लिए वीडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयर।
  • वीडियो एवं ऑडियो मॉनीटर (या टेलीविजन)। चित्र क्रमांक - 21 (d) देखें 
चित्र क्रमांक - 21 (d)
नॉन-लीनियर डिजिटल वीडियो संपादन के सबसे कठिन पहलुओं में से एक हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के जरुरत से जायदा विकल्प उपलब्ध होना है। जिसके कारण कई सामान्य वीडियो फॉर्मेट हैं जो एक दूसरे के साथ असंगत होते हैं, कोई फॉर्मेट किसी सॉफ्टवेर को सपोर्ट नहीं करता तो कोई फॉर्मेट किसी सॉफ्टवेर को और जिसके कारण एक मजबूत संपादन प्रणाली स्थापित करना एक चुनौती हो सकती है।

लाइव एडिटिंग -

कुछ स्थितियों में कई कैमरों और अन्य वीडियो स्रोतों को केंद्रीय मिश्रण कंसोल (विज़न मिक्सर) के माध्यम से रूट किया जाता है और वास्तविक समय में संपादित किया जाता है। लाइव टेलीविज़न कवरेज लाइव एडिटिंग का एक उदाहरण है।

Wednesday 17 October 2018

वीडियो एडिटिंग: सिद्धांत (Principles)

वीडियो संपादन के बेसिक सिद्धांत 

वीडियो एडिटिंग वीडियो फुटेज को संपादित करने की प्रक्रिया है जिसमे विशेष प्रभाव जोड़ना, टेक्स्ट को जोड़ना, ध्वनि रिकॉर्डिंग जोड़ना इत्यादि शामिल हैं । यदि वीडियो संपादन मौजूद नहीं होता तो इसका मतलब यह होता कि किसी भी गलती के बिना, सही क्रम में, सबकुछ लाइव करने की आवश्यकता होती जो कि आज के आधुनिक युग में असंभव है । पिछले कई वर्षों में वीडियो संपादन बहुत बदल गया है क्योंकि टेक्नोलॉजी बदल गई है और जिसमे समग्र रूप से सुधार हुआ है, लेकिन आज भी संपादन के सिद्धांत बहुत समान हैं।

वीडियो एडिटिंग में कुछ सिद्धांत या नियम होते हैं जिससे दर्शकों को कहानी को बेहतर तरह से समझाने में मदद मिलती है. प्रत्येक तकनीक दर्शकों से एक विशिष्ट प्रतिक्रिया बनाने के लिए डिज़ाइन की गई है. 
कुछ बेसिक सिद्धांत इस प्रकार हैं - 

1. निरंतरता (Continuity) – 
यह घटनाओं की निरंतरता में शॉट्स के अनुक्रम की व्यवस्था करने के लिए संदर्भित करता है. 
(This refers to arranging the sequence of shots into a progression of events.)

Continuity का एडिटिंग में मतलब एडिटिंग नियमों का पालन करते हुए वीडियो पर इस तरह से कट लगाना है जिससे वीडियो की निरंतरता और स्पष्टता बनी रहे । इसका उपयोग टेलीविजन और फिल्म दोनों में बहुत अधिक होता है, क्योंकि यह कहानी को सही क्रम से आगे बढाने में मदद करता है जिससे कहानी को समझना आसान हो जाता है। इसका उपयोग नहीं करने से कई बार भ्रम पैदा हो सकता है। कंटीनुइटी कई प्रकार की होती है जिसमे मुख्य होती है –

a. कंटीनुइटी ऑफ़ इनफार्मेशन 

b. कंटीनुइटी ऑफ़ शॉट्स 

c. कंटीनुइटी ऑफ़ मूवमेंट और एक्शन 

d. कंटीनुइटी ऑफ़ कलर 

e. कंटीनुइटी ऑफ़ साउंड 

जायदा जानकारी के लिए निचे दिये गए लिंक पर क्लिक कर वीडियो देख सकते हैं .
https://www.youtube.com/watch?v=U6B4COAnizc

2. रूल ऑफ़ 180 और 30 डिग्री (Rule of 180 and 30 degree) – 

180 डिग्री नियम एक मूल दिशानिर्देश है, जो एक ही दृश्य में दो पात्रों या तत्वों को एक-दूसरे के साथ हमेशा एक ही बाएं / दाएं रिश्ते का बनाये रखता है । इसमें शॉट्स इस प्रकार होने चाहिए जिससे दोनो पात्र एक दुसरे को देख कर बात कर रहे हैं या एक दुसरे के विपरीत खड़े हैं यह स्पष्ट समझ आना चाहिए. इसलिए प्रोडक्शन जितने भी कैमरा उपयोग हो रहे हैं वह इमेजिनरी लाइन (180 डिग्री पर बनाई हुई लाइन) के एक तरफ ही रहेंगे. यदि कैमरा दो विषयों को जोड़ने वाली इमेजिनरी एक्सिस से गुजरता है तो विपरीत तरफ से दिखाया जाएगा और इसलिए रिवर्स एंगल में दिखाया जाएगा। दर्शक पात्रों की स्थिति से भ्रमित न हों इसलिए कैमरा इस लाइन को पार नहीं करता है। (चित्र क्रमांक - 20(a) देखें)

चित्र क्रमांक - 20(a)

30-डिग्री नियम एक मूल फिल्म संपादन दिशानिर्देश है जिसमें कहा गया है कि एक ही विषय के दो लगातार शॉट के बीच के कैमरा एंगल में कम से कम 30 डिग्री का अंतर होना चाहिए. यदि कैमरा एंगल 30 डिग्री से कम होता है, तो शॉट्स के बीच ट्रांजीशन एक जंप कट की तरह दिख सकता है-जो दर्शकों को कहानी से बाहर ले जा सकता है। दर्शक कथा के बजाए फिल्म तकनीक पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

3. संपादन अदृश्य बनाओ (Make the Edit invisible) – 
 दर्शक को कभी भी एडिटिंग का एहसास नहीं होना चाहिए, इसलिए शॉट्स या ट्रांजीशन का उपयोग इस प्रकार करना होता है जिससे जम्प कट का एहसास ना हो. निरंतरता यह सुनिश्चित करता है कि संपादन दिखाई नहीं दे रहा है जो शॉट को सुसंगत बनाता है जो सुनिश्चित करता है कि दर्शक भ्रमित नहीं हो रहा है। ऑय लाइन मैच तकनीक का उपयोग भी इसी का ही एक उदहारण है. इसमें पहले शॉट में एक चरित्र स्क्रीन की तरफ देखता है और फिर अगले शॉट में दिखया जाता है कि वह चरित्र क्या देख रहा है। इसका उपयोग कट ट्रांजीशन को आसान बनाने में मदद के लिए किया जाता है क्योंकि दर्शकों को कट होने की उम्मीद है और यह पता लगाने के लिए उत्सुक है कि अगला शॉट में क्या है। 

4. हमेशा एक निश्चित संदेश दें (Always deliver a certain message) - 
जब भी हम कुछ वीडियो फुटेज को इकठ्ठा करके उसमे संपादन करते हैं तो ये ध्यान रखना जरुरी है कि संपादन पूरा होने के बाद उससे कोई न कोई सन्देश दर्शकों तक जरुर जाए. इससे उस वीडियो की सार्थकता बनी रहती है. 

Tuesday 11 September 2018

वीडियो एडिटिंग : परिचय (Introduction)

वीडियो एडिटिंग क्या है? 


वीडियो संपादन (Video Editing) वीडियो शॉट्स या फुटेज में कांटछांट करके और पुनर्व्यवस्थित करके एक नया और सार्थक वीडियो बनाने की प्रक्रिया है. (Video editing is the process of manipulating and rearranging video shots to create a new and meaningful video).

संपादन आमतौर पर पोस्ट प्रोडक्शन प्रक्रिया (Post production process) का सिर्फ एक हिस्सा माना जाता है - अन्य पोस्ट-प्रोडक्शन कार्यों में शीर्षक (Titling), रंग सुधार (Color correction), ध्वनि मिश्रण (Audio mixing) आदि शामिल हैं।

बहुत से लोग अपने सभी पोस्ट-प्रोडक्शन काम का वर्णन करने के लिए संपादन शब्द का उपयोग करते हैं, खासकर गैर पेशेवर परिस्थितियों में। इस ब्लॉग में हम निम्नलिखित में से किसी भी कार्य का अर्थ के रूप में संपादन शब्द का उपयोग करते हैं: 


- वीडियो क्लिप और/या ऑडियो क्लिप को पुन: व्यवस्थित करना, जोड़ना और/या हटा देना।
- रंग सुधार, फ़िल्टर और अन्य कोई इफ़ेक्ट लागू करना।
- दो क्लिप के बीच ट्रांजीशन लगाना ।

चित्र क्रमांक - 19 (a)




एडिटिंग के उद्देश्य – 

वीडियो संपादित करने के कई कारण हैं और आपका संपादन करने का तरीका और दृष्टिकोण से उसका वांछित परिणाम निर्भर करेगा। सबसे पहले आपको अपने संपादन के लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना होगा, जो इस प्रकार हैं: 

· अवांछित फुटेज निकालें (Remove unwanted footage) - संपादन में यह सबसे सरल और सबसे आम कार्य है। इसमें वह शॉट्स जो उपयोग करने लायक नहीं है सबसे पहले उन शॉट्स को हटा लेना चाहिए, पर ध्यान रहे कई वीडियो ऐसे होते हैं जिनको सुधार करके उनका उपयोग किया जा सकता है उनका उपयोग करें. 

· सबसे अच्छा फुटेज चुनें (Choose best footage) - प्रोडक्शन के दौरान आवश्यकता से कहीं अधिक और विभिन्न संस्करण फुटेज शूट करना आम बात है पर अंतिम संपादन के लिए केवल सर्वोत्तम वीडियो फुटेज का चयन करना एक महतवपूर्ण कार्य है.

· प्रवाह बनाएं (Create work flow)- अधिकांश वीडियो एक उद्देश्य बताते हैं जैसे कोई कहानी कहता है या जानकारी प्रदान करता है । संपादन में भी यह सुनिश्चित करना होता है कि अंतिम वीडियो भी कोई ना कोई उद्देश्य पूरा कर रहा है.

· इफेक्ट्स, ग्राफिक्स, संगीत, टाइटल आदि जोड़ें (Add effects, graphics, music, title etc.) - इन सभी तत्वों को जोड़कर आप वीडियो को अधिक आकर्षक बना सकते हैं। 

· वीडियो की शैली, गति या मूड बदलें (Alter the style, pace or mood of the video) - एक अच्छा संपादक वीडियो को सही गति और शैली देकर वीडियो का मूड बदलने में सक्षम होता है। इसी से तय होता है कि दर्शक सम्पादित वीडियो पर कैसे प्रतिक्रिया देंगे। 

· वीडियो को एक विशेष "कोण" दें (Give the video a particular angle) - वीडियो को किसी विशेष दृष्टिकोण का समर्थन करने, संदेश देने या एजेंडा देने के लिए तैयार किया जा सकता है।